Shiv chaisa - An Overview
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धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
शिव चालीसा - जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला.
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल – कन्या – वरं, परमरम्यं ।
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
ॠनिया more info जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
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